2012, നവംബർ 18, ഞായറാഴ്‌ച


नाट्य निर्देशक नादिरा जहीर बब्बर ने कहा है कि रंगमंच से बड़ा स्कूल नहीं है। अनुशासन और टीमवर्क सीखना हो तो थियेटर में आइये। उन्होंने रंगकर्म को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किये जाने की वकालत की। साथ ही कहा कि सरकार हर शहर में रंगकर्म के विकास के लिए छोटे प्रेक्षागृहों का निर्माण कराये। यहां दर्पण नाट्य मंच द्वारा आयोजित तीन दिवसीय नाट्य समारोह में अपनी संस्था एकजुट के साथ शामिल होने आयी आई नादिरा जहीर बब्बर शुक्रवार को पत्रकारों से बातचीत कर रही थी। उन्होंने कहा कि रंगमंच की चुनौतियां समाज की चुनौतियों से अलग नहीं है। मगर उम्मीद कायम है। अच्छे दिन आयेंगे। तीस वर्ष पहले जब मैं मुम्बई में पृथ्वी थियेटर से जुड़ी थी तो दर्शक जुटाना मुश्किल काम था। संसाधन भी मुश्किल से जुटते थे। अब तो मुम्बई के थियेटरों में नाटकों के शो हाउसफुल जाते हैं। कहीं नाटकों की कमी तो हिन्दी रंगमंच की बदहाली का कारण नहीं है? उन्होंने कहा नहीं। पहले भी नाटक लिखने वाले कितने थे? मोहन राकेश, लक्ष्मीनारायण लाल ,धर्मवीर भारती। मगर नाटक होते थे। कविता, कहानी व उपन्यास के रूपांतरण से या फिर रंगकर्मी खुद लिखते थे।

അഭിപ്രായങ്ങളൊന്നുമില്ല:

ഒരു അഭിപ്രായം പോസ്റ്റ് ചെയ്യൂ