2011, ജൂലൈ 25, തിങ്കളാഴ്‌ച

चिड़िया ( जापानी कविता )

काँपती डाल
वसन्त का समय
पीले पत्ते पर पड़ी लाल लकीर

पानी पर धूप का जाल
प्रतीक्षा में आकुल चिड़िया
अमलतास की डाल पर

दिन डूबा रात हुई
सितारे उभरे
आँसुओं की तरह

आकाश में कटोरे -सा चन्द्रमा
खालीपन
कितना भरा हुआ

किनारे पर खड़ी बगुली की परछाई से
बिध जाता है
मछली का शरीर

हवा के झोंके से
अचानक उड़ गए
वृक्षों पर खिले सारस फूल ।

2011, ജൂലൈ 21, വ്യാഴാഴ്‌ച

इकाई २ सेहत की राह पर ( ग्रिड़)

इकाई सेहत की राह पर ( ग्रिड़)
समस्या क्षेत्र - स्वास्थ्य सार्वजनिक स्वास्थ्य संबन्धी वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अभाव
आशय -
चिकित्सा का क्षेत्र भी नैतिकता का बड़ा स्थान है।

अध्ययन सामग्री - गद्य बाबुलाल तेली की नाक (व्यंग्य कहानी)
उपज - रपट , संपादकीय
भाषापरक प्रक्रिया - व्यंग्य कहानी में प्रयुक्त मुहावरेदार भाषा-शैली,प्रयोग आदि से परिचय

unitplan

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2011, ജൂലൈ 19, ചൊവ്വാഴ്ച

rachanayem

समकालीन हिंदी कविता वर्तमान सामाजिक संदर्भों और समस्याओं के प्रति सतर्क है। प्रतिबद्धता की ऎसी कविताओं की रचनाधर्मिता के प्रमुखहस्ताक्षर है-ज्ञानेद्रपति।
नदी और साबुन - प्रकृति के प्रदूषण को उजागर करती है। नदियों के अतीत की याद दिलाते हुए कवि वर्तमान की दुबली पतली दशा पर आहें भरते हैं। प्रवाह के शुरू के दौर में नदी की धार में तेज़
और ओज थी। उसके पानी में स्वच्छता और ताज़गी थी।लेकिन बहते-बहते नदी का साफ़ -सुथरा बहिरंग और अंतरंग धीरे-धीरे मैला-कुचैला हो गया है।कहावत है- बहता पानी निर्मला। लेकिन यहाँ उसका उल्टा ही नज़र आता है।कल-कल की मिठास की सुरीली आवाज़ में विष की कटुता की सघनता भर गई।
बाघों ,कच्छुओं या यहाँ तक कि हाथियों की वजह से पानी न कलुषित हुआ और न तो कम।लेकिन नदी का वर्तमान कितना बिगड़ गया है।धन के लालची और स्वार्थिलोगों ने नदी के किनारे कारखाना बना दिया है।उनसे बह आनेवाले दूषित अम्ल जल को नदी सालों से झेलती आ रही है।आखिर नदी के निर्मल पानी की त्वचा बैंगनी हो गई।
भारत के ज्यादातर नदियाँ हिमालय से निकलती हैं। भारत के सिरहाने हिमालय एक ताकतवर प्रहरी की तरह खड़ा हैव- किसी भी चुनौती या खतरे का मुकाबला करने को तैनात।अनेकानेक आक्रमणों
और युद्धों में इसी हिमालय ने भारत को बचाया था। लेकिन - हथेली भर की साबुन की टिकिया - से
नदी अब हार जाती है।
ज्ञानेद्रपति ने प्रस्तुत कविता में कई प्रतीकों और बिंबों के सहारे नदी के गत और आगत रूप-रंग के दिशांतरों को दर्शाया है।
विसंगति की बात है कि नदी के पानी को प्रदूषित करते समय इंसान अपनी ज़िम्मेदारी को समझता
भी नहीं।बाघ जुठराते हैं ,लेकिन पानी कलुषित नहीं होता। हाथी जल से क्रीड़ा करते हैं तब नदियाँ
मस्ती ही महसूस करती हैं।मतलब है कि जानवरों ने पानी का कुछ भी नहीं बिगाड़ा। पर इंसानों ने नदी का सत्यनाश कर डाला है।
नदी और साबुन - कविता को वर्तमान के एकाधिक संदर्भों में विश्लेषित किया जा सकता है।
निम्नलिखित संद्रभों में बहुआयामी अर्थ-छवियाँ निकल सकती हैं।
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2011, ജൂലൈ 17, ഞായറാഴ്‌ച

चिडिया


चिडिया (रामदरश मिश्र)-अतिरिक्त वाचन(कविता)

!
രാംദരശ് മിശ്രിന്റെ ചെറുതും എന്നാല്‍ സാരപൂര്‍ണ്ണവുമായ കവിത- चिड़िया
ആധുനിക മനുഷ്യന്‍ പ്രകൃതിയോടും ജീവജാലങ്ങളോടും വളരെ ക്രൂരമായാണ് പെരുമാറുന്നത്.
ശ്രീ രാംദരശ് മിശ്രിന്റെ "ചിഡിയാ" എന്ന ഈ കവിത മനുഷ്യന്റെ സ്വാര്‍ത്ഥതയുടെ ജീവിക്കുന്ന
തെളിവാണ്.
ഒരു പക്ഷി വനത്തിലെ തന്റെ കൂട്ടില്‍ നിന്നും പുറത്തേയ്ക്കു പോയതാണ്.

വൈകുന്നേരം ചേക്കേറാനായി തിരിച്ചെത്തിയപ്പോള്‍
കാടിന്റേതായതൊന്നും അവിടെ അവശേഷിച്ചിരുന്നില്ല.

ആരോ വനത്തിന് തീ കൊളുത്തിയിരുന്നു.
പക്ഷി തന്റെ കൂട് അന്വേഷിച്ച് വളരെ ദൂരം പറന്നു.
അവസാനം ക്ഷീണിച്ച് കത്തിക്കരിഞ്ഞ ഒരു മരക്കൊമ്പില്‍ ചെന്നിരുന്നു.
അത് ചുററും നോക്കി.
നോക്കെത്താത്ത ദൂരം കാട് കത്തിയമര്‍ന്നിരിക്കുന്നു.
കത്തിക്കരിഞ്ഞ മൃഗങ്ങളുടെ അസ്ഥികൂടങ്ങള്‍ അവിടവിടെയായി ചിതറി കിടക്കുന്നു.
ഇതെല്ലാം കണ്ടപ്പോള്‍ പക്ഷിയ്ക്ക് സംശയം...
"ഇന്ന് കാട്ടില്‍ ഏതെങ്കിലും മനുഷ്യന്‍ വന്നിരുന്നോ ?"

इंसान ही नहीं पशु-पक्षी भी घर की तलाश में भटकते रहते है।
उड़ती भटकती चिड़िया का उर भी आतुर है।
घोसले की तलाश में चिडिया को हताशा और थकावट ही मिलती है, घोसला नहीं मिलता।
जब चिडिया जली हुई डाल पर बैठ गई तो शंका बढ़ी कि जंगल में कोई आदमी आया होगा।
प्रस्तुत कविता एक चिड़िया के अंतस की इन्हीं परतों को खोलती हैं।



പരീക്ഷ

ഓണപ്പരീക്ഷ വീണ്ടും വരണമെന്ന് കേരളം പൊതുവില്‍ ആഗ്രഹിക്കുന്നുണ്ടോ ?
പരീക്ഷകളാണ് കുട്ടികളുടെ പഠനം നിലനിര്‍ത്തുന്നതും ഗുണനിലവാരം അളക്കുന്നതും എന്ന് കുരുതാനാകുമോ?
നിരന്തരവിലയിരുത്തലിന്റെ ശാസ്ത്രീയത സ്വയം ബോധ്യപ്പെടുത്തുവാനും സമൂഹത്തെ ബോധ്യപ്പെടുത്തുന്നതിനും
അധ്യാപകര്‍ക്ക് കഴിയാതെ പോയോ?
(അങ്ങിനെയാണെങ്കില്‍ ഇത്രയും കാലം നടന്ന അധ്യാപകപരിശീലനം കൊണ്ട് എന്തുഫലമായുണ്ടായത് ?)
വേണ്ടത്ര അരങ്ങൊരുക്കം നടത്താതെയാണോ കഴിഞ്ഞ സര്‍ക്കാര്‍ പരീക്ഷകള്‍ പിന്‍വലിക്കുന്ന നടപടി സ്വീകരിച്ചത്?
ഇപ്പോള്‍ പരീക്ഷ പുനസ്ഥാപിക്കുന്ന സാഹചര്യം ഉണ്ടായാല്‍ ,പാഠ്യപദ്ധതി സമീപനത്തിനും അനുഗുണമായി
പരീക്ഷയില്‍ നിന്ന് നമ്മുടെ കുട്ടികളെ എന്നെങ്കിലും മോചിപ്പിക്കാന്‍ കഴിയുമോ?

2011, ജൂലൈ 16, ശനിയാഴ്‌ച

वाचन (निर्धारण)

शब्दों की पहचान
उचित गति
सहजता
उच्चारण
उतार-चढ़ाव

आस्वादन टिप्पणी (निर्धारण)

भूमिका (कवि और कविता का परिचय)
भाव-विश्लेषण
कविता की भाषा,बिंब,प्रतीक,प्रयुक्त शब्दावली आदि पर टिप्पणी
कविता की प्रासंगिकता,संदेश आदि पर अपना दृष्टिकोण।

रपट (निर्धारण)

० चित्र वाचन करके प्रसंग पहचाना है।
० रपट की घटना और स्थान का उल्लेख किया है।
० रपट की घटना और का विस्तार क्रमबद्ध रूप से किया है।
० रपट के लिए उपयुक्त भाषा-शैली अपनाई है।
० उचित शीर्षक दिया है

उद् घोषणा (निर्धारण)
उद् घोषणा की सम्यक जानकारी पाई है।
कार्य, समय, तिथि ,स्थान आदि का उल्लेख किया है।
भाषा में संक्षिप्तता और स्पष्टता है।

संगोष्ठी (निर्धारण)

विषय पर हुई चर्चा में भाग लिया है।
आशय पललवित करके आलेख तैयार किया है।
संगोष्ठी -आलेख पर हुई चर्चा में भाग लिया है।
संशोधन के बाद रपट तैयार की है।

वार्तालाप (निर्धारण )

वार्तालाप का प्रसंग समझ लिया है
उचित उपक्रम लिखा है।
पात्रानुकूल वार्तालाप लिखा है।
स्वाभाविक एवं उचित भाषा-शैली का प्रयोग किया है।
समुचित उपसंहार भी किया है।

2011, ജൂലൈ 15, വെള്ളിയാഴ്‌ച

grid (बसेरा लौटा दो )

इकाई - बसेरा लौटा दो
समस्या क्षेत्र - जल थल संसाधनों के प्रबंधन में वैज्ञानिकता का अभाव।
प्रकृति पर मानव के अनियंत्रित हस्तक्षेप से प्राकृतिक संपदा का शोषण ।
आशय - मनुष्य स्वार्थ-पूर्ति के लिए जो कार्य कर रहे हैं उससे जलस्रोतों का दोहन हो रहा है।
मानव के स्वार्थ एवं क्रूर व्यवहार पशु-पक्षियों के नाश के कारण बन रहे है।
जंगल की भारी मात्रा में कटाई पशु-पक्षियों की भूखमरी एवं बेधर हो जाने की वजह बन जाती है।
पद्य - नदी और साबुन
गद्य - गौरा (रेखाचित्र)
हाथी के साथी (घटना )
उद्घोषणा
पारिभाषिक शब्दावली
अतिरिक्त वाचन - चिड़िया (कविता )
उपज - आस्वादन टिप्पणी (नदी और साबुन)
वार्तालाप (महादेवी वर्मा और डाक्टर)
संगोष्ठी आलेख
संगोष्ठी रपट
रपट
उद्घोषणा
संकलन
भाषापरक प्रक्रिया - लिंग का प्रयोग ,
हिंदी एवं मातृभाषा के समध्वनीय शब्दों का संकलन
योजक का प्रयोग
विशेषण का संकलन
वर्तमानकालिक क्रियाओं का प्रयोग
संचार -संबन्धी पारिभाषिक शब्दों का संकलन
चित्र प्रदर्शनी

गौरा -रेखाचित्र (महादेवी वर्मा )

प्रकृति हमारी माँ है और पशु-पक्षी हमारे सहजीवी ।लेकिन आज का मानव स्वार्थ-पूर्ति
के लिए निर्ममता से पशु-पक्षियों की हत्या कर रहा है।

घटना क्रम
० महादेवी अपनी छोटी बहन श्यामा के घर से बछिया लाई ।
० परिचितों और परिचारकों ने गाय का श्रद्धापूर्वक स्वागत किया ।
० गाय का नामकरण भी किया ।
० एक वर्ष के उपराँत गौरा एक बत्स की माँ बनी ।
० दूध लानेवाले ग्वाले के आग्रह के अनुसार दोहन केलिए उसकी ही नियुक्ति की गई ।
० गौरा का स्वास्थ्य बिगडने लगा।
० ग्वाला लापता हो गया।
० लेखिका ने पशु-चिकित्सकों से चिकित्सा करवाई ।
० यह बात पक्की हो गई कि सूई खिलाने से ही गाय का स्वास्थ्य बिगड गया।
० गौरा का मृत्यु से संघर्ष शुरु हुआ
० बाहर के विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार भी गाय का इलाज करवाया।

गौरा (महादेवी वर्मा)


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धरती ने हमें सब कुछ दिया । स्वच्छ पानी , स्वच्छ हवा ,स्वच्छ वातावरण आदि सबकुछ...। लेकिन आज मानव ने सारी स्वच्छता नष्ट कर दी है।हमारे जलस्रोत आज शुष्क हो गए है, मैले हो गए है..कई तरह के शोषणों के शिकार हो गए है..। मनुष्य का स्वार्थ ,असावधानी एवं अवैज्ञानिक प्रगति-चेतना ने उसे प्रकृति की मासूमियत से हटा दिया है।हमारे पूर्वज दोहन पर नहीं पोषण पर बल देते थे।
നദിയില്‍ നിന്നും ശുദ്ധമായ ജലം സുലഭമായി ലഭിച്ചിരുന്ന ഒരു കാലം നമുക്കുണ്ടായിരുന്നു.എന്നാല്‍ ഇന്ന് മനുഷ്യന്റെ അനിയന്ത്രിതമായ ഇടപെടല്‍ മൂലം ജലത്തിന്റെ ശുദ്ധതയിലും ലഭ്യതയിലും ഗണ്യമായ മാററം
സംഭവിച്ചിരിക്കുന്നു.ഈ വിഷയത്തെ അടിസ്ഥാനമാക്കി എഴുതിയ കവിതയാണ് ജ്ഞാനേന്ദ്രപതിയുടെ
-നദി ഔര്‍ സാബുന്‍.

नदी और साबुन



समकालीन हिंदी कविता वर्तमान सामाजिक संदर्भो और समस्याओं के प्रति सतर्क है। प्रतिबद्धता की ऎसी कविताओं की रचना के प्रमुख हस्ताक्षर है।
नदी और साबुन - प्रकृति के प्रदूषण को उजागर करती है।
ऎसा एक ज़माना था कि हमें नदियों से पर्याप्त मात्रा में स्वच्छ पानी मिलता।
लेकिन आज मानव के अनियंत्रित हस्तक्षेप से पानी की स्वच्छता एवं सुलभता में अवश्य संकट आ गया है।इस विषय के आधार पर लिखित
ज्ञानेद्रपति की लिखित कविता है- नदी और साबुन।