2012, ഒക്ടോബർ 31, ബുധനാഴ്ച
सकुबाई से सफाई घर की भी, दिल की भी
नाटक में आप जितने
भी प्रयोग कर लें,
पीरियड ड्रामा ले
आएं, ड्रामे
के माध्यम से आप राग रंग,
नट भाव,
उपमा,
उपमान की बातें
बताएं, सच
तो यह है कि आम आदमी नाटक के
उन्हीं हिस्सों से जुड़ पाता
है, जिसके
साथ वह अपना जीवन देख पाता
है। पौराणिक आख्यानों में
भी वह वहीं तक पहुंचता है,
जहां उसे आज का अपना
समाज, परिवेश
दिखाई देता है। ऐसे में सामजिक
या यों कहें कि घरेलू पृष्ठभूमि
पर खेले गये नाटक से दर्शक
तुरंत अपना नाता जोड़ लेते
हैं। एकजुट थिएटर ग्रुप
प्रस्तुत नादिरा ज़हीर बब्बर
लिखित व निर्देशित नाटक
“सकुबाई” नाटक एक ऐसी ही रचना
है, जिसमें
घर-घर
काम करनेवाली बाई सकुबाई के
माध्यम से समाज में एक साथ ही
जी रहे नाना वर्गों के नाना
जीवन को देखे जाने की कोशिश
है। साथ ही साथ खुद उसके अपने
जीवन की भी। एक आम मध्य या उच्च
वर्ग और तथाकथित निम्न वर्ग
में कोई फर्क़ नहीं रह जाता,
जब मामला प्रेम,
सेक्स,
घरेलू हिंसा,
बलात्कार,
आपसी जलन आदि पर
आता है, बल्कि
कई बार तो ये तथाकथित निम्न
वर्ग के लोग इन संभ्रांत लोगों
पर भारी पड़ जाते हैं। क्या
फर्क़ रह जाता है सकुबाई या
उसकी मालकिन में कि दोनों के
ही पति के विवाहेतर संबंध
हैं। विरोध करने पर आर्थिक
रूप से आत्मनिर्भर मालकिन
भी पति के हाथों बुरी तरह पिटती
है, मगर
बच्चों की खातिर घर नहीं छोड़
पाती। मगर, फर्क़
है। सकुबाई के पति के संबंध
जग जाहिर हैं। मालकिन के पति
के संबंध सामाजिकता की खोल
में छुपा। नौकरानी हो कर भी
सकुबाई इतनी ईमानदार है कि
मालकिन अपना पूरा घर उसके ऊपर
छोड़ देती है, जबकि
उसी मालकिन की करोड़पति सहेली
मालकिन के पर्स से उसके हीरे
की अंगूठी चुरा लेती है। मुंबई
में आपको ऐसी ईमानदार बाइयों
की फौज़ मिलेगी। बल्कि यूं
कहें कि जिस तरह हर सफल पुरुष
के पीछे किसी स्त्री का हाथ
होता है, उसी
तरह हर सफल औरत के पीछे उसकी
बाई का हाथ होता है।
एकपात्रीय नाटक को कुशलतापूर्वक डेढ़ घंटे तक खींच ले जाना किसी समर्थ कलाकार की ही खासियत है और यह विशेषता निस्संदेह सकुबाई की भूमिका में सरिता जोशी की है। सरिता जोशी गुजराती थिएटर और फिल्म की मशहूर और बड़ी कुशल, इसलिए सफल अभिनेत्री हैं। वे लगभग 45 सालों से भी अधिक समय से अभिनय के क्षेत्र में हैं। एकपात्रीय अभिनय में सब कुछ उसी पात्र को दर्शाना होता है और सरिता जोशी ने मालिक से लेकर अपने पति और बूढ़ी मां की भी भूमिका बड़ी कुशलता से निभायी है। तदनुसार आवाज़, शारीरिक भंगिमा, चेहरे पर भाव। हालांकि उम्र अपनी छाप उन पर छोड़ने लगी है। बीच-बीच में वे हांफ जाती रहीं, संवाद भी लगा कि कुछ भूलती सी रहीं। मगर यह उनकी नाट्यकुशलता ही थी कि इसे उन्होंने ज़ाहिर नहीं होने दिया।
यह नाटक 1999 में पृथ्वी फेस्टिवल में ओपन हुआ था। तब से इस नाटक के कई शो हो चुके हैं। नादिरा बब्बर के यह भी पुराने नाटकों मे से एक है, जिसमें उनकी पुरानी मेहनत व प्रतिबद्धता स्पष्ट दिखाई देती है। सेट प्रभार, स्टेज और प्रोडक्शन सभी में हनीफ पटनी ने अपनी कुशलता दिखायी है। फिर भी, नाटक के दस साल हो जाने के कारण सेट अब पुराने हो चुके हैं, जो स्टेज पर भी दिखते हैं। प्रकाश व्यवस्था नाटक के अनुरूप थी और संगीत संचालन एक्टर को अभिनय के साथ-साथ डांस करने व अन्य हाव-भाव के लिए पर्याप्त स्पेस देता है। “दयाशंकर की डायरी” की तरह ही यह नाटक आपको अपने से जोड़ कर रखता है, बल्कि कुछ अधिक ही, क्योंकि आखिरकार यह एक महिला की लिखी, महिला की ज़ुबानी, महिला की गाथा है, और महिला की कहानी में प्रताड़णा के भाव तनिक अधिक तो रहते ही हैं, जिसमें व्यक्ति और परिवेश दोनों की ही भूमिका रहती है। इसलिए यह नाटक हो सकता है आपको “दयाशंकर की डायरी” से अधिक अपील करे, जैसा कि इसने यहां के दर्शकों को किया था।
एकपात्रीय नाटक को कुशलतापूर्वक डेढ़ घंटे तक खींच ले जाना किसी समर्थ कलाकार की ही खासियत है और यह विशेषता निस्संदेह सकुबाई की भूमिका में सरिता जोशी की है। सरिता जोशी गुजराती थिएटर और फिल्म की मशहूर और बड़ी कुशल, इसलिए सफल अभिनेत्री हैं। वे लगभग 45 सालों से भी अधिक समय से अभिनय के क्षेत्र में हैं। एकपात्रीय अभिनय में सब कुछ उसी पात्र को दर्शाना होता है और सरिता जोशी ने मालिक से लेकर अपने पति और बूढ़ी मां की भी भूमिका बड़ी कुशलता से निभायी है। तदनुसार आवाज़, शारीरिक भंगिमा, चेहरे पर भाव। हालांकि उम्र अपनी छाप उन पर छोड़ने लगी है। बीच-बीच में वे हांफ जाती रहीं, संवाद भी लगा कि कुछ भूलती सी रहीं। मगर यह उनकी नाट्यकुशलता ही थी कि इसे उन्होंने ज़ाहिर नहीं होने दिया।
यह नाटक 1999 में पृथ्वी फेस्टिवल में ओपन हुआ था। तब से इस नाटक के कई शो हो चुके हैं। नादिरा बब्बर के यह भी पुराने नाटकों मे से एक है, जिसमें उनकी पुरानी मेहनत व प्रतिबद्धता स्पष्ट दिखाई देती है। सेट प्रभार, स्टेज और प्रोडक्शन सभी में हनीफ पटनी ने अपनी कुशलता दिखायी है। फिर भी, नाटक के दस साल हो जाने के कारण सेट अब पुराने हो चुके हैं, जो स्टेज पर भी दिखते हैं। प्रकाश व्यवस्था नाटक के अनुरूप थी और संगीत संचालन एक्टर को अभिनय के साथ-साथ डांस करने व अन्य हाव-भाव के लिए पर्याप्त स्पेस देता है। “दयाशंकर की डायरी” की तरह ही यह नाटक आपको अपने से जोड़ कर रखता है, बल्कि कुछ अधिक ही, क्योंकि आखिरकार यह एक महिला की लिखी, महिला की ज़ुबानी, महिला की गाथा है, और महिला की कहानी में प्रताड़णा के भाव तनिक अधिक तो रहते ही हैं, जिसमें व्यक्ति और परिवेश दोनों की ही भूमिका रहती है। इसलिए यह नाटक हो सकता है आपको “दयाशंकर की डायरी” से अधिक अपील करे, जैसा कि इसने यहां के दर्शकों को किया था।
मैं
सकु... सकुबाई
पैंतालीस साल की मराठी औरत
हुँ। मेहनती होने की वजह से
चौड़ी और मज़बूत हुँ ।
यहाँ
मुंबई में सात साल की उम्र में
आयी थी। बचपन में गाँव में
रहनेवाली थी । मेरी माँ ,
बहन
वासंती और एक भाईनितिन
। मेरा नाम शकुन्तला रखी थी।
मां ने
मैं
सकु...सकुबाई
पैंतालीस साल की मराठी औरत
हुँ। मेहनती होने की वजह से
चौड़ी और मज़बूत हुँ ।
यहाँ
मुंबई में सात साल की उम्र में
आयी थी। बचपन में गाँव में
रहनेवाली थी । मेरी माँ ,
बहन
वासंती और एक भाई नितिन
। मेरा नाम शकुन्तला रखी थी।
मां ने मुझे पाठशाला जाना नहीं
दिया । बचपन में हड्डी तोड़कर
काम करने पर भी खाना पूरा नहीं
मिलता था । काका लोग मेरे पिताजी
को तंग करते थे। मामा मुझे और
मेरी माँ और भाई को लेकर मुंबई
में आया । मेरे पिताजी और एक
बहन गाँव में रहते हैं। बिदाई
के समय दोनों रो रहे थे ।यहाँ
एक बड़े घर में नौकरानी हुँ
।यहाँ
सबकुछ मैं कर रहा हुँ। मेरे
साहब और मेंसाहब बहूत अच्छे
हैं। साहब का नाम किशोर कपूर
और में साहब का पूजा कपूर।
दो
बच्चेै हैं -
पोमल
और रौकी । दोनों को मैं बहूत
प्यार करती हुँ । मैं यहां एक
नौकरानी नहीं हुँ,
इस
परिवार का एक अंग हुँ।
आज
मैं बहूत खुश हुँ । कभी-कभी
मैं अकेले बैठकर बचपन के बारे
में सोचविचार कर रही हुँ ।
मुझे पाठशाला जाना नहीं
दिया । बचपन में हड्डी तोड़कर
काम करने पर भी खाना पूरा नहीं
मिलता था । काका लोग मेरे पिताजी
को तंग करते थे। मामा मुझे और
मेरी माँ और भाई को लेकर मुंबई
में आया । मेरे पिताजी और एक
बहन गाँव में रहते हैं। बिदाई
के समय दोनों रो रहे थे ।यहाँ
एक बड़े घर में नौकरानी हुँ
। यहाँ
सबकुछ मैं कर रहा हुँ। मेरे
साहब और मेंसाहब बहूत अच्छे
हैं। साहब का नाम किशोर कपूर
और मेंसाहब का पूजा कपूर।
दो
बच्चेै हैं -
पोमल
और रौकी । दोनों को मैं बहूत
प्यार करती हुँ । मैं यहां एक
नौकरानी नहीं हुँ,
इस
परिवार का एक अंग हुँ।
आज
मैं बहूत खुश हुँ । कभी-कभी
मैं अकेले बैठकर बचपन के बारे
में सोचविचार कर रही हुँ ।
चुटकुले
एक
संवादाता ने एक बार बर्नार्ड
शाँ से पूछा ,
“ आप
किस बुक से सबसे अधिक लाभान्वित
हुए हैं ?”
शाँ
ने उत्तर दिया -
"चेक
बुक से "
।
*******************************************
एक
बाबाजी कुछ चेलो के साथ किसी
नदी के किनारे नहा
रहे
थे ।दूर,
पानी
पर निगाह पड़ी तो देखा कि एक
बहूत सुंदर
काला
कंबल बहा जा रहा है। एक मन-चला
चेला,जो
बड़ा अच्छा
तैराक
था ,बाबाजी
से बोला,
"आप
की आज्ञा हो तो वह कंबल
ले
आऊँ । दरअसल वह कंबल नहीं था
,एक
भालु था ।
चेले
ने ज्यों ही कंबल समझकर उस पर
हाथ रखा ,
भालू
ने चेले को पकड़ लिया । चेला
जान छुड़ाना चाहता था ,पर
भालु उसे छोड़ता ही न था ।दोनों
पानी में बहने लगे ।गुरू ने
किनारे से पुकारा ,
"बच्चा
,कंबल
को छोड़ दो ,
चला
आ "।
चेले
ने जवाब दिया ,”
महाराज
,
मैं
तो कंबल को छोड़ता हुँ,
मगर
कंबल मुझे नहीं छोड़ता ।"
**************************************************
संगोष्ठी
समाज
में समभाव की अनिवार्यता
मनुष्य
सामाजिक प्राणी है । अपनी
आवश्यकताओं की पूर्ति केलिए
वह एक दूसरे पर निर्भर रहता
है।इसी कारण मनुष्य सामाजिक
बन गए।
मनुष्य
अपने कार्य केलिए समाज में
मानव के बीच में कई प्रकार
भेदभाव रखा है। जाति के नाम
पर समाज में मानव के बीच में
कई प्रकार भेदभाव रखा है।जाति
के नाम पर समाज में भिन्नता
पैदा की गई ।फिर वह एक सामाजिक
समस्या बन गई।
काम
के आधार पर मानव को अनेक जातियाँ
रखा गया।ब्राह्मण,
क्षत्रिय,वैश्य,शूद्र,आदि
वर्गीकरण मनुष्य जाति को
दिया।यही से जातिव्यवस्था
शुरू होती है।आज-कल
यह भयानक रूप बन गया है।समाज
में भिन्नता पैदा हो गयी
है।हमारी एकता नष्ट होने के
कारण जाति व्यवस्था है।
गाँधीजी
ने दलितो की उन्नति केलिए अथक
प्रयास किया था ।दलितो की
शिक्षा का व्यवस्था हो गया
।नई शिक्षा भेद भाव मिटाने
की प्रेरणाएँ दी। आज का समाज
शिक्षित है । वे समझते है कि
समाज में सब एक साथ रहना अनिवार्य
है। यहाँ एकता कायम रखने का
प्रयत्न हो रहा है।
*********************
MOTIVATION
CLASS
CD
പ്രദര്ശനം
(nick)
ചര്ച്ച
(കുട്ടികളില്
ആത്മവിശ്വാസം വളര്ത്താന്
സഹായകരമായ പ്രവര്ത്തനം)
● രണ്ടു
മിനിട്ട് കണ്ണടച്ച് മൗനമായി
ഇരിക്കുക
● കണ്ണ്
തുറക്കുമ്പോള് NICK
VIDEO CLIP
●ശാന്തമായി
വീക്ഷിക്കുക
●കണ്ട
കാര്യങ്ങള് ശാന്തമായി
ഓര്ത്തെടുക്കുക.
√ നിക്കിനെ
നിങ്ങള് എങ്ങനെ വിശേഷിപ്പിക്കും?
√ എന്തുകൊണ്ടാണ്
ഈ വിശേഷണം ?
√ നിക്ക്
ചെയ്യുന്ന കാര്യങ്ങള്
എന്തൊക്കെ ?
√ ഈ
കാര്യങ്ങള് ചെയ്യാന് നമുക്ക്
പ്രയാസം അനുഭവപ്പെടുന്നുണ്ടോ
?
√ പരിമിതികളെ
നിക്ക് എങ്ങനെ അതിജീവിച്ചു?
√നിക്കിന്റെ
ജീവിതത്തില് നിന്ന് എന്ത്
സന്ദേശം ലഭിച്ചു ?
√ എല്ലാ
ഇന്ദ്രിയങ്ങളും അവയവങ്ങളും
സാഹചര്യങ്ങളും അനുകൂലമായ
നമുക്ക് നിക്ക് ചെയ്യുന്ന
കാര്യങ്ങള് ചെയ്യുവാന്
കഴിയുന്നുണ്ടോ ?എന്തുകൊണ്ടില്ല
?
√ നാം
എന്ത്കൊണ്ട് നമുക്കുളള
കഴിവുകള് പ്രയോജനപ്പെടുത്തുന്നില്ല?
● നിക്കിന്റെ
ജീവിതം കണ്ടപ്പോള് നിങ്ങളെ
ആവേശം കൊള്ളിച്ച കാര്യങ്ങള്
എന്തൊക്കെ ?
● ആത്മവിശ്വാസം
● പുഞ്ചിരി
● നീന്തല്
● ആശയവിനിമയശേഷി
√ നിങ്ങള്ക്ക്
നീന്താന് അറിയാമോ ?
√ കമ്പ്യൂട്ടര്
നോളഡ്ജ് ഉണ്ടോ ?
√ പ്രാസംഗികനാണോ
?
● നിക്കിന്
ഇത്തരം കാര്യങ്ങള് ചെയ്യുവാന്
കഴിയുമെങ്കില് നമുക്ക്
കഴിയില്ലേ
?
YES
, I CAN
എനിക്കു
കഴിയും.
ഉറക്കെ
പറയൂ...
ശാന്തത......
√ ജലദോഷം
,പനി,ചെറിയൊരു
വല്ലായ്മ ഇവ വരുമ്പോള്
താങ്ങിനുവേണ്ടി നാം വാശി
പിടിക്കുന്നു.
√ താങ്ങില്ലാതെ
പോകുമ്പോള് നാം പരിശീലിക്കേണ്ടേ?
● സ്വയം
പഠനം
● സ്വന്തം
വഴികള്
● സ്വന്തം
പരിശ്രമം നമുക്കാവശ്യമില്ലേ
?
നിക്ക്
ആകര്ഷിക്കുന്നതാരേ ?
എല്ലാ
കഴിവുകളുമുളള ആളുകള് നിക്കിനെ
കാണുവാനും കേള്ക്കുവാനും
ഓടിയെത്തുന്നു.നിക്കിന്റെ
ജീവിതമവര്ക്ക്
ആവേശമാകുന്നു.
നിക്ക്
തന്റെ വൈകല്യങ്ങളെ തമാശയായി
കണ്ട് ...ഉളള
കഴിവുകളെ പരമാവധി
പ്രയോജനപ്പടുത്തുന്നു.....
സ്വന്തം
കഴിവുകള് പ്രയോജനപ്പെടുത്തുന്നവരാണ്
മനുഷ്യസമൂഹത്തെ മുന്നോട്ട്
നയിച്ചത്.
● പ്രമോദ്
മഹാജന്
● രാജേഷ്
പൈലററ്
● ജഗജീവന്റാം
● എ.പി.ജെ.അബ്ദുള്
കലാം
മനുഷ്യന്
എവിടെ ജീവിച്ചു ?
കാട്ടില്
ഇന്നെവിടെ
ജീവിക്കുന്നു ?
നാട്ടില്
♣ മനുഷ്യന്
കൈവരിച്ച നേട്ടങ്ങള് അനേകം
വ്യക്തികളുടെ കൂട്ടായ്മയിലൂടെയാണ്.....
►നമ്മുടെ
ലക്ഷ്യങ്ങള് നേടാന് നാം
എന്തു ചെയ്യണം ?
♣പരസ്പരം
കൈ കോര്ത്ത് ഒന്നിച്ച്
മുന്നോട്ട് പോകണം.
●അധ്യാപകര്
,
കൂട്ടുകാര്
….എല്ലാവരുടേയും
സഹായം ഒരുമിച്ചുളള പ്രവര്ത്തനം
ലക്ഷ്യത്തിലെത്താന് സഹായിക്കും.
►ഒററയ്ക്കും
കൂട്ടായും പരിശ്രമിച്ചാല്
എന്താണ് പ്രയോജനം ?
- ലക്ഷ്യം നേടാം...
- ശ്രമിച്ചാല് നിങ്ങള്ക്ക് കഴിയില്ലേ ?
- നിങ്ങളുടെ തീരുമാനത്തെ / മാര്ഗ്ഗത്തെ തടസ്സപ്പെടുത്തുന്ന കാര്യങ്ങള് എന്തൊക്കെ ?കുട്ടികള് പറയുന്നു.
- തെററിനോട് No പറയുവാന് നമുക്ക് കഴിയണം.ഇനിയുളള ദിവസങ്ങള് നമ്മുടേതാണ്.Today is the first day of the rest of my life.ശാന്തത......
- ഞാന് ഒരു കഥ പറയാം...ഒരു ആഫ്രിക്കന് കര്ഷകന്റെ കഥ..വലിയ സ്വപ്നങ്ങളും മോഹങ്ങളും പൂവണിയുവാന് വേണ്ടി സ്വന്തം പുരയിടം വിറ്റ് മറ്റൊരു ദേശത്ത് ചെന്ന് അലഞ്ഞ് നടന്ന് ലക്ഷ്യമെത്താതെ ..വലഞ്ഞ കര്ഷകന് കുറച്ചു വര്ഷങ്ങള്ക്കു ശേഷം സ്വന്തം ഗ്രാമത്തില് തിരിച്ചെത്തുന്നു.താന് വിററ പുരയിടത്തിലെ കുടുംബനാഥന് കോടീശ്വരനായി കഴിയുന്നു.പറമ്പില് അയാള് കോടീശ്വരനായി കഴിയുന്നു.പറമ്പില് അയാള് സ്വര്ണ്ണഖനികണ്ടെത്തിയിരുന്നു.ഭൂമി സര്ക്കാരിന് വിട്ടു കൊടുത്ത അയാള്ക്ക് പാരിതോഷികമായി പണം ലഭിച്ചു.
- സ്വന്തം പറമ്പിലെ ധനം കണ്ടെത്താതെയാണ് കര്ഷകന്വര്ഷങ്ങളോളം പുരോഗതിയ്കായി അലഞ്ഞത്.
- ഈ കഥ നമ്മോട് പറയുന്നതെന്ത് ?> നമ്മുടെ കഴിവുകളില് നാം വിശ്വസിക്കണം.>ആത്മാഭിമാനം ഉണ്ടാവണം.>നാം എല്ലാവരും കഴിവുളളവരാണ്. സംശയമുണ്ടോ ?
- നമുക്കൊന്ന് പരിശോധിക്കാം.
- രണ്ട് മിനിട്ടില് എത്ര പൂജ്യങ്ങളിടാം?
- 10, 20,50............
- നമുക്കൊന്ന് നോക്കിയലോ ?
- കുട്ടികള് വരയ്ക്കുന്നു.
- താന് കുറിച്ചു വയ്കാന് കഴിഞ്ഞതിനേക്കാള് കൂടുതല് എഴുതുവാന് കഴിഞ്ഞതായി തിരിച്ചറിയുന്നു.
കുട്ടികളോട്
ആദ്യം ഒരു പൂജ്യം വരയ്ക്കാന്
പറയുന്നു.രണ്ട്
മിനിട്ടിനുളള എത്ര പൂജ്യം
വരയ്ക്കാം ?
അവര്
കുറിച്ചിടുന്നു.
ഒരു
മിനിട്ട് സമയം നല്കുന്നു.
അവര്
എഴുതിയ പൂജ്യങ്ങള്
എണ്ണി
തിട്ടപ്പെടുത്തുന്നു.സ്വന്തം
കഴിവ് തിരിച്ചറിയാത്ത അവസ്ഥ
തിരിച്ചറിയുന്നു.
>
നമുക്ക്
എന്തൊക്കെ കഴിവുകളുണ്ട് ?
കുട്ടികള്
കുറിക്കുന്നു.
അവ
മെച്ചപ്പെടുത്താനുളള വഴികള്
നാം ആലോചിക്കണം.
കഴിവുകേടുകളെകുറിച്ച്
ചിന്തിച്ച് പിന്മാറാതെ
കഴിവുകളെകുറിച്ച്
ഓര്ത്ത്
മുന്നോട്ടു പോകുക.
ലക്ഷ്യങ്ങള്
നേടാന് നമുക്ക് കഴിയും.
>
ഇപ്പോള്
നമ്മുടെ മുന്നിലുളള ലക്ഷ്യമെന്ത്
?
- SSLC പരീക്ഷയില് ഉയര്ന്ന ഗ്രേഡോടെ വിജയം വരിക്കുക.
- വരാന് പോകുന്ന പരീക്ഷയെ നാം എങ്ങനെ സമീപിക്കണം?
- നിങ്ങള് എന്തൊക്കെ ചെയ്യും ?ശാന്തത.......കുട്ടികള് പറയുന്നു...എഴുതുന്നു.
- നിങ്ങള് എല്ലാവരും മിടുക്കന്മാരാണ്. നിക്കിന്റെ കഥ നിങ്ങള് കൃത്യമായി വ്യാഖ്യാനിച്ചു.ബുദ്ധിപരമായി വിശകലനം ചെയ്തു.ജീവിതസന്ദേശം സ്വാംശീകരിച്ചു.ചോദ്യങ്ങള്ക്ക് കൃത്യമായി ഉത്തരം പറഞ്ഞു.എങ്ങനെയാണ് സാധിച്ചത് ?
- ശാന്തതയോടെ …...സമചിത്തതയോടെ …...ഗൗരവത്തോടെ …..പ്രവര്ത്തനത്തില് പങ്കാളിയായി.ഒരുമിച്ച് പാടി..
- നമുക്കിനിയും ഏറെ മുന്നോട്ട് പോകണം.
- ഇനിയുളള ദിവസങ്ങള് പരിശ്രമത്തിന്റെ ...ലക്ഷ്യപ്രാപ്തിയുടെ നാളുകളാവട്ടെ....ഏവര്ക്കും വിജയാശംസകള് നേരുന്നു,.....
2012, ഒക്ടോബർ 30, ചൊവ്വാഴ്ച
पाठ्यक्रम
इकाई |
समस्या |
आशय |
गद्य |
पद्य |
अतिरिक्त वाचन |
उपज |
भाषापरक प्रक्रिया |
समय |
नज़रें नज़ारें |
औद्धोगीकरण व शहरीकरण
में पर्यावरण के अनुकूल दृष्टिकोण का अभाव शहरी जीवन का तनाव पारिवारिक विघटन का कारण बन जाता है। शहरीकरण अकेलापन और मानसिक संघर्ष का कारण बन जाता है। |
शहरीकरण से सामूहिकता
की भावना नष्ट हो रही है। जीवन को संघर्षमुक्त बनाने केलिए औरों से दिली संबन्ध रखना है। शहरीकरण से आपसी संबन्धों में उलझनें बढ़ी है। विभिन्न प्रांतों के लोगों के रहन-सहन , प्राकृतिक दृश्यों की सुंदरता एवं संस्कृति की जानकारी प्राप्त करना |
आदमी का बच्चा (कहानी) सकुबाई (नाटक) |
वह तो अच्छा हुआ (कविता) |
समा बँध गया (यात्रा विवरण) |
आणस्वादन टिप्पणी निबंध आत्मकथा कार्यालय संबन्धी पारिवारिक शब्दावली संकलन यात्राविवरण |
परसर्गों का प्रयोग भूतकालिक क्रियाओं का प्रयोग |
|
आस्वादन टिप्पणी
वह तो अच्छा हुआ (भगवत रावत)
समकालीन हिंदी कविता के श्रेष्ठ कवियों में एक,श्री भगवत रावत की बहुचर्चित कविता है-वह तो अच्छा हुआ।आधुनिक मानव की निर्ममता,संवेदनहीनता आदि उनकी कविता का मुख्य विषय है।उनकी कविता विशेष अर्थ में सामाजिक ,सांस्कृतिक विमर्श की कविता है।उन्होंने इस कविता में अपने समय की जटिलताओं का चित्रण किया है।
कवि कहते है - नगर की संकरी गंदी गली में पैर फ़िसलकर गिरा हुआ बच्चा वहाँ पड़ा रो रहा था। वह गली तो गरीब लोगों की है,इसलिए ही उस गंदी गली का नाम नगरपालिका में नहीं था।वह गली इतनी संकरी थी कि बच्चे के गिर पड़ने से लोगों का वहाँ से होकर आना-जाना मुश्किकल हो गया।यदि कोई गंदगी में लिपटे बच्चे को गोद में उठाकर प्यार करे तो वह चुप हो जाएगा।लेकिन इसकी हिम्मत या फुरसत किसी को नहीं थी।
कवि यहाँ वर्तमान समाज का वास्तविक चित्र प्रस्तुत करते है।कोई किसी को भी सहारा न देकर भीड़ में अकेला हो रहा है।ऊपर से देखने पर वलगता है कि आधुनिक समाज में सभी मानव एक साथ मिलकर रहते हैं ।लेकिन असलियत यह है कि उनके बीच कोई मानसिक निकटता नहीं है।सब अपने स्वार्थमय लक्ष्य की ओर त्वरित गति से चलने मात्र में उत्सुक है।
कुछ लोग दूर से बच्चे को देख रहे थे। लेकिन उनका विचार यह था कि उस गरीब बच्चे को गोद में उठाने पर गंदगी फैलने के अलावा कोई फायदा नहीं।यहाँ कवि आधुनिक समाज की संवेदनहीनता की ओर संकेत करते हैं। सभी मानव मूल्यों के ऊपर धन को प्रतिष्ठित कपर दया,सहानुभूति,संवेदनहीनता सब कुछ विस्मृत हो जाते है।
वर्तमान परिस्थिति में एक बड़ा उद्योग बन गये समाचार पत्र और दृश्यमाध्यमों के सत्यभंग की और भी यहाँ कवि करारी चोट की है।आज की मीडिया किसी किसी भी त्रासदी को उत्सव बनानेवाले है।उन्हें ताजा समाचार मिलना ही काखी है।संप्रेषित समाचार की सचाई के बारे में उन्हें कोई चिंता नहीं।वास्तव में बच्चा गंदगी में पैर फिसलकर गिरा है।लेकिन अखबारवालों में बात इस तरह पहूँची कि किसी ने नगर की संकरी-गंदी गली में रोता हुआ बच्चा छोड़ दिया है।चैनलों के प्राचुर्य के बारे में भी यहाँ कवि संकेत करते है।
एक कविता तभी समसामयिक मानी जाती है जब वह तत्कालीन समस्याओं का संबोधन करती है।"वह तो अच्छा हुआ "वर्तमान समाज की ज्वलंत समस्या पर लिखी गयी कविता है।
उसकी अधिकाँश घटनाएँ आज के समाज में हमारे सम्मुख होनेवाली है।
जिस गली में बच्चा गिरकर रो रहा था उसका नाम अगर नगरपालिका में उल्लिखित
नही है तो इसका मतलब है कि वह गली उपेक्षा,निंदा औरक तिरस्कार का शिकार हो चुकी थी।"गली और संकरी हो जाती है “- इस प्रयोग से यह व्यक्त है कि पहले ही गली संकरी थी।इसका प्रमुख कारण विकास का अभाव था।"आ धमकना “- चैनलवालों के आने के तरीके को सूचित करता है।कवि यह संकेत करता है कि महापौर के शपथ समारोह के आगे एक गरीब छोकरे के गिर जाने का कोई मूल्य नहीं।कवि ने सौभाग्य -शब्द का प्रयोग भी व्यंग्य रूप से किया है।
वह तो अच्छा हुआ (भगवत रावत)
समकालीन हिंदी कविता के श्रेष्ठ कवियों में एक,श्री भगवत रावत की बहुचर्चित कविता है-वह तो अच्छा हुआ।आधुनिक मानव की निर्ममता,संवेदनहीनता आदि उनकी कविता का मुख्य विषय है।उनकी कविता विशेष अर्थ में सामाजिक ,सांस्कृतिक विमर्श की कविता है।उन्होंने इस कविता में अपने समय की जटिलताओं का चित्रण किया है।
कवि कहते है - नगर की संकरी गंदी गली में पैर फ़िसलकर गिरा हुआ बच्चा वहाँ पड़ा रो रहा था। वह गली तो गरीब लोगों की है,इसलिए ही उस गंदी गली का नाम नगरपालिका में नहीं था।वह गली इतनी संकरी थी कि बच्चे के गिर पड़ने से लोगों का वहाँ से होकर आना-जाना मुश्किकल हो गया।यदि कोई गंदगी में लिपटे बच्चे को गोद में उठाकर प्यार करे तो वह चुप हो जाएगा।लेकिन इसकी हिम्मत या फुरसत किसी को नहीं थी।
कवि यहाँ वर्तमान समाज का वास्तविक चित्र प्रस्तुत करते है।कोई किसी को भी सहारा न देकर भीड़ में अकेला हो रहा है।ऊपर से देखने पर वलगता है कि आधुनिक समाज में सभी मानव एक साथ मिलकर रहते हैं ।लेकिन असलियत यह है कि उनके बीच कोई मानसिक निकटता नहीं है।सब अपने स्वार्थमय लक्ष्य की ओर त्वरित गति से चलने मात्र में उत्सुक है।
कुछ लोग दूर से बच्चे को देख रहे थे। लेकिन उनका विचार यह था कि उस गरीब बच्चे को गोद में उठाने पर गंदगी फैलने के अलावा कोई फायदा नहीं।यहाँ कवि आधुनिक समाज की संवेदनहीनता की ओर संकेत करते हैं। सभी मानव मूल्यों के ऊपर धन को प्रतिष्ठित कपर दया,सहानुभूति,संवेदनहीनता सब कुछ विस्मृत हो जाते है।
वर्तमान परिस्थिति में एक बड़ा उद्योग बन गये समाचार पत्र और दृश्यमाध्यमों के सत्यभंग की और भी यहाँ कवि करारी चोट की है।आज की मीडिया किसी किसी भी त्रासदी को उत्सव बनानेवाले है।उन्हें ताजा समाचार मिलना ही काखी है।संप्रेषित समाचार की सचाई के बारे में उन्हें कोई चिंता नहीं।वास्तव में बच्चा गंदगी में पैर फिसलकर गिरा है।लेकिन अखबारवालों में बात इस तरह पहूँची कि किसी ने नगर की संकरी-गंदी गली में रोता हुआ बच्चा छोड़ दिया है।चैनलों के प्राचुर्य के बारे में भी यहाँ कवि संकेत करते है।
एक कविता तभी समसामयिक मानी जाती है जब वह तत्कालीन समस्याओं का संबोधन करती है।"वह तो अच्छा हुआ "वर्तमान समाज की ज्वलंत समस्या पर लिखी गयी कविता है।
उसकी अधिकाँश घटनाएँ आज के समाज में हमारे सम्मुख होनेवाली है।
जिस गली में बच्चा गिरकर रो रहा था उसका नाम अगर नगरपालिका में उल्लिखित
नही है तो इसका मतलब है कि वह गली उपेक्षा,निंदा औरक तिरस्कार का शिकार हो चुकी थी।"गली और संकरी हो जाती है “- इस प्रयोग से यह व्यक्त है कि पहले ही गली संकरी थी।इसका प्रमुख कारण विकास का अभाव था।"आ धमकना “- चैनलवालों के आने के तरीके को सूचित करता है।कवि यह संकेत करता है कि महापौर के शपथ समारोह के आगे एक गरीब छोकरे के गिर जाने का कोई मूल्य नहीं।कवि ने सौभाग्य -शब्द का प्रयोग भी व्यंग्य रूप से किया है।
2012, ഒക്ടോബർ 26, വെള്ളിയാഴ്ച
2012, ഒക്ടോബർ 24, ബുധനാഴ്ച
മണ്ണിന്റെ
മണമുളള രചനകള്
ഡോ.
വി.എസ്.ശ്രീചിത്ര
പഠനത്തിന്റെയും
ആസ്വാദനത്തിന്റെയും പടവുകള്
കയറാന് സഹായിക്കുന്ന
ഹൃദയസ്പര്ശിയായ കഥകളും
കവിതകളും നാടകങ്ങളും
യാത്രാവിവരണങ്ങളും ഉള്പ്പെടുന്നതാണ്
ഒന്പതാം ക്ളാസിലെ പാഠപുസ്തകം.
നാലു
യൂണിററായ "
മാട്ടി
കീ ഖുശ്ബു"
വില്
മണ്ണിന്റെ മണവും
കര്ഷകരുടെ
വിയര്പ്പിന്റെ ഗന്ധവുമുളള
രചനകളാണ്.
നോവല്
സമ്രാട്ട് പ്രേംചന്ദിന്റെ
"ഗോദാന്"
ഉപന്യാസത്തിന്റെ
ഒരംശം "പാവ്
തലേ ദബീ ഗര്ദ്ദന് "ആണ്
ഈ യൂണിററിലെ ആദ്യ പാഠം.ആദരിക്കപ്പെടാണ്ടതായ
കര്ഷകര് പുതിയ
തലമുറയിലനുഭവിക്കപ്പെടേണ്ടി
വരുന്ന പീഠനങ്ങളെ കുറിച്ചു
പ്രതിപാദിക്കുന്ന
ലോകബാബുവിന്റെ കഥ "മേമന
“, സ്വന്തം
കൃഷിസ്ഥലമുപേക്ഷിച്ചു
നഗരത്തിലേയ്ക്കു പലായനം
ചെയ്യാന്
നിര്ബന്ധിതരാകുന്ന
കര്ഷകരുടെ ദുരിതങ്ങളെ
കുറിച്ചുളള നിളയ്
ഉപാദ്യായുടെ
കവിത"
ഖേതീ
നഹീ കര്നേവാലാ കിസാന്"
എന്നിവയ്കു
പുറമെ അധികവായനയ്ക്കായി
മന്നു ഭണ്ഡാരി രചിച്ച മഹാദേവീ
വര്മ്മയുടെ "ഘീസ
"എന്ന
രചനയുടെ നാട്യരൂപാന്തരണവും
, അനുഭവത്തിലൂടെ
മാത്രം പരിജ്ഞാനം നേടുന്ന
കര്ഷകന്റെ കഥ "പഹേലി"യും
ഈ യൂണിററിന്റെ ഭാഗങ്ങളാണ്.
എല്ലായ്പ്പോഴും
വിനാശം മാത്രം വിതയ്ക്കുന്ന
യുദ്ധത്തെ കുറിച്ചും
സമാധാനത്തിന്റെ
ആവശ്യകതയെപ്പററിയും
ഓര്മ്മിക്കാന് സഹായിക്കുന്ന
രചനകളാണ് രണ്ടാമത്തെ യൂണിറ്റായ
"നഹീ
ബന്ദുക് ബജായേ ബാസുരീ "യിലുളളത്.
ഈ
യൂണിരറിന്റെ ആദ്യപാഠം ,രണ്ടാം
ലോകമഹായുദ്ധത്തിന്റെ ഭീകരമുഖം
വ്യക്തമാക്കുന്ന അജ്നേയിന്റെ
കവിത ഹിരോഷിമയാണ്.യുദ്ധത്തിനെതിരെ
മുന്നറിയിപ്പു
നല്കിക്കൊണ്ട് ഗാന്ധിജി
ഹിററ് ലര്ക്കെഴുതിയ കത്ത്
"അപ്പീല്
മാനവതാ കേ നാം പര്.”
, യോദ്ധാക്കളുടെ
കുടുംബങ്ങളേയും
ബന്ധുക്കളുടേയും യുദ്ധം
എത്രമാത്രം സ്വാധീനിക്കുന്നുവെന്ന്
വ്യക്തമാക്കുന്ന മോഹന്രാകേശിന്റെ
ഏകാങ്ക
നാടകം "സിപാഹീ
കീ മാം "എന്നിവ
കൂടാതെ രമേശ് ദവയുടെ കവിത
"അഗര്
ഹമേം ബന്ദുക് മിലേ തോ "എന്നിവയും
ഈ
യൂണിറ്റില് ഉള്പ്പെട്ടിട്ടുണ്ട്.
ഓംപ്രകാശ്
വാല്മീകിയുടെ ആത്മകഥ "ജുഠന്”-ന്റെ
ഭാഗം "ഐസാ
ഥാ മേരാ ബച്പന്"
,സമൂഹത്തില്
സമഭാവനയുടെ ആവശ്യകതയെപ്പററി
പ്രദിപാദിക്കുന്ന നിര്മ്മലാപുതുലിന്റെ
കവിത-
"മേരാ
സബ്കുച്ച് അപ്രിയ് ഹെ ഉന്കീ
നസര് മേം “-
എന്നിവയാണ്
മൂന്നാമത്തെ യൂണിറ്റിലെ "
വഹ്
ദിന് സരൂര്
ആയേഗാ
"യിലെ
പ്രധാന രചനകള്.ഇതു
കൂടാതെ മറാത്താ സാഹിത്യകാരന്
ശരത് ചന്ദ്ര ചട്ടോപാധ്യായയുടെ
ജീവചരിത്രം "ആവാരാ
മസീഹാ "യുടെ
ഒരു ഭാഗവും പ്രസിദ്ധ ഫോട്ടോഗ്രാഫറും
ലേഖകനുമായ ആമോദ് കാര്ഖസിന്റെ
ഡയറികുറിപ്പും ചേര്ത്തിട്ടുണ്ട്.
"
ജല്
ജീവന് ഹേ"
എന്ന
അവസാന യൂണിററിലെ രചനകളില്
ആലോക് അഗ്രവാച്ചിന്റെ കഥ
"ഹമാരേ
ഗാവ് കീ ആഖ് രീ ബാരിശ് “,
അനുപം
മിശ്രിന്റെ ലേഖനം "പാല്
കെ കിനാരെ രഖാ ഇതിഹാസ്"
, ഏകാന്ത്
ശ്രീവാസ്തവിന്റെ കവിത
"ഡംഡേ
പാനീ കീ മശീന് "എന്നിവയും
ഉള്പ്പെട്ടിട്ടുണ്ട്.ഈ
നാല് അദ്ധ്യായങ്ങളിലും
ഉള്പ്പെട്ടിട്ടുളള പ്രമുഖരായ
ഹിന്ദി സാഹിത്യകാരന്മാരെ
പരിചയപ്പെടാം.
നിളയ്
ഉപാധ്യായ്
സമകാലിക
സാഹിത്യത്തിലെ പ്രസിദ്ധ
സാഹിത്യകാരനായ
നിളയ്
ഉപാധ്യായ് (1963-
) ബീഹാറിലെ
ദുല്ഹന്പൂര് ഗ്രാമത്തില്
ജനിച്ചു.
അകേലാ
ഘര് ഹുസൈന് കാ ,
കട്ടൗതി
എന്നിവ അദ്ദേഹത്തിന്റെ
കാവ്യസമാഹാരങ്ങളും "
അഭിയാന്"
നോവലുമാണ്.
മന്നു
ഭണ്ഡാരി
മനുഷ്യ
മനശാസ്ത്രത്തെയും സ്ത്രീ
ജീവിതത്തെയും ആധാരമാക്കി
സാഹിത്യരചന നടത്തുന്ന മന്നു
ഭണ്ഡാരി (
1931- ) രാജസ്ഥാനിലെ
ഭാഗ്പുരയിലാണ് ജനിച്ചത്.
നോവലുകളില്
പ്രധാനപ്പെട്ട വ ആപ്കാ
ബംടി,സ്വാമി
,മഹാഭോജ്
,കനവാ
എന്നിവയും കഥാസമാഹാരങ്ങളില്
പ്രധാനപ്പെട്ടവ ഏക് പ്ളേററ്
സൈലാബ്,ത്രിശങ്കു,മൈംഹാര്ഗയീ,തീന്
നിഗാഹോം കാ തസ്വീര്എഹീ സച്ച്
ഹെ,ആഖേം
ദേഖാ ഝൂഠ് എന്നിവയാണ്.
മന്നുജിയുടെ
പ്രസിദ്ധ നാടകമാണ് ബിനാ
ദീവാരോം കാ ഘര്.പത്ര
പ്രവര്ത്തകനും ,സാഹിത്യകാരനായ
ഭര്ത്താവ് രാജേന്ദ്രയാദവുമായി
ചേര്ന്ന് മന്നു ഭണ്ഡാരി
രചിച്ച നോവലാണ് ഏക് ഇഞ്ച്
മുസ്കാന്.
ഏകാന്ത്
ശ്രീവാസ്തവ്
ആധുനികത
കവികളില് പ്രസിദ്ധനായ ഏകാന്ത്
ശ്രീവാസ്തവ്
(1964-
) ഛത്തീസ്ഗഡിലെ
റായ് പൂരില് ജനിച്ചു.
അന്ന്
ഹേ മേരാ ശബ്ദ് ,മിട്ടീ
സേ കഹൂംഗാ ധന്യവാദ് ,ബീജ്
ലേ ഫൂല് തക് എന്നിവ അദ്ദേഹത്തിന്റെ
കാവ്യസംഗ്രഹങ്ങളാണ്.രാംവിലാസ്
വര്മ്മ അവാര്ഡ് ,ദുഷ്യന്ത്
കുമാര് അവാര്ഡ് എന്നിവ
നേടിയിട്ടുളള അദ്ദേഹം വാഗര്ത്ത്
പത്രികയുടെ സമ്പാദകനുമാണ്.
പ്രേംചന്ദ്
ഹിന്ദി
സാഹിത്യത്തിലെ നോവല് സമ്രാട്ട്
പ്രംചന്ദ് (1880-1936)
കാശിക്കടുത്തുളള
ലമഹി എന്ന ഗ്രാമത്തിലാണ്
ജനിച്ചത്.
അദ്ദേഹത്തിന്റെ
കുട്ടിക്കാലത്തെ പേര്
ധന്പത്രായ് എന്നായിരുന്നു.
ഗാന്ധിജിയുടെ
ആദര്ശങ്ങളില് ആകൃഷ്ടനായിരുന്ന
ധന്പത്രായുടെ ആദ്യകാല രചനകള്
ഉര്ദുവിലായിരുന്നു.പിന്നീട്
പ്രേംചന്ദ് എന്ന പേരില്
ഹിന്ദിയില് സാഹിത്യരചനകള്
നടത്തി.
പ്രേംചന്ദിന്റെ
രചനകളിലെ മുഖ്യവിഷയം ജന്മിമാരുടെ
ചൂഷണവും ഗ്രാമീണരുടേയും
കര്ഷകരുടേയും നിസ്സഹായ
അവസ്ഥയുമായിരുന്നു.
സേവാസദന്,
പ്രേമാശ്രം,നിര്മ്മല
,
കായാകല്പ്
,കര്മ്മ
ഭൂമി ,രംഗഭൂമി
തുടങ്ങി ധാരാളം നോവലുകള്
എഴുതിയിട്ടുളള പ്രേംചന്ദിന്റെ
വിശിഷ്ടമായ നോവല്
കര്ഷകരുടെ
മഹാകാവ്യം െന്നറിയപ്പെടുന്ന
ഗോദാന് ആണ്.
ഏകദേശം
മുന്നൂറിലധികം കഥകളും
അദ്ദേഹത്തിന്റേതായിട്ടുണ്ട്.അവ
മാനസരോവര് എന്ന പേരില്
പ്രസിദ്ധമാണ്.
ശതരഞ്ച്
കേ ഖിലാഡി ,ബഡേ
ഘര് കീ ബേട്ടീ,നമക്
കാ ദരോഗാ ,കഫന്
എന്നിവ അദ്ദേഹത്തിന്റെ
പ്രസിദ്ധ കഥകളും കര്ബല ,പ്രേം
കീ വേദി ,സംഗ്രാം
എന്നിവ നാടകങ്ങളുമാണ്.
ലേഖനങ്ങള്
,ബാലസാഹിത്യം
,ജീവചരിത്രം
എന്നീ മേഖലകളിലും പ്രതിഭ
തെളിയിച്ച വ്യക്തിത്വമാണ്
പ്രേംചന്ദിന്റേത്.
അജ്ണേയ്
ചിന്തകനും
കവിയും നോവലിസ്ററും കഥാകാരനും
പത്രപ്രവര്ത്തകനും
ചിത്രകാരനുമായിരുന്ന
സച്ചിതാനന്ദ് ഹീരാനന്ദ്
വാത്സ്യായന് അജ്ണേയ് (
1911- 1987 ) ഉത്തര്
പ്രദേശിലാണ് ജനിച്ചത്.
താരസപ്തക്
(1943 ) എന്ന
പേരില് ഒരു കാവ്യ സമാഹാരം
പ്രകാശനം ചെയ്ത അജ്ണേയ് ഹിന്ദി
സാഹിത്യത്തില് ഒരു പുതിയ
യുഗത്തിന് (
പ്രയോഗവാദ്
) തുടക്കം
കുറിച്ചു.
വൃത്തം
,അലങ്കാരം
തുടങ്ങി എല്ലാ ബന്ധനങ്ങളില്
നിന്നും സ്വതന്ത്രമാക്കി
ഹിന്ദി കവിതയ്ക്ക് ഒരു പുതിയ
രൂപം നല്കി,
ഹരി
ഘാസ് പര ക്ഷണ് ഭര്,
അപ്നേ
അപ്നേ അജ്നബീ ,ശേഖര്
ഏക് ജീവനി എന്നിവ നോവലുകളും
അരേ യായാവര് രഹേഗാ യാദ്
യാത്രാ വിവരണവുമാണ്.
അദ്ദേഹത്തിന്റെ
പ്രസിദ്ധ കാവ്യ സംഗ്രഹമായ
കിതനീ നാവോം മെം കിതനീ ബാര്
-ന്
1978- ല്
ഭാരതീയ ജ്ങാനപീഠ പുരസ്കാരം
ലഭിച്ചു.
നിര്മ്മലാ
പുതുല്
സന്താലി
(ആദിവാസി
) ഭാഷയിലെ
സാഹിത്യകാരിയായ നിര്മ്മലാ
പുതുല് (1972-
)ആദിവാസി
കുടുംബത്തിലാണ്ാ ജനിച്ചത്.
നഴ്സിങ്ങില്
ഡിപ്ളോമ നേടിയിട്ടുളള നിര്മ്മലാ
പുതുലിന്റെ രചനകളുടെ പ്രത്യേകത
പ്രകൃതിവര്ണ്ണനയുടെ അപൂര്വ്വ
സൗന്ദര്യവും താളലയപൂര്ണ്ണമായ
ഭാഷയുമാണ്.
നഗാടേ
കീ തരഹ് ബൈഠേ ഹേം ശബ്ദ് -
പ്രസിദ്ധ
കാവ്യ സംഗ്രഹമാണ്.
മോഹന്
രാകേശ്
ഹിന്ദി
സാഹിത്യത്തിലെ മസീഹാ
എന്നറിയപ്പെടുന്ന മോഹന്
രാകേശ് (1925-1972)
അമൃതസരിലാണ്
ജനിച്ചത്.
ഹിന്ദിയിലും
സംസ്കൃതത്തിലും ബിരുദാനന്ദ
ബിരുദം നേടിയിട്ടുളള അദ്ദേഹം
സിംല,ജലന്ധര്,ഡല്ഹി
എന്നിവിടങ്ങളിലെ അദ്ധ്യാപകനായിരുന്നു.
നാടകം,
നോവല്,
കഥ
ലേഖനങ്ങള് ,യാത്രാവിവരണങ്ങള്
തുടങ്ങി എല്ലസാ മേഖലകളിലും
കഴിവു തെളിയിച്ച രാകേശ് സാരിക
എന്ന പത്രികയുടെ എഡിറററായും
പ്രവര്ത്തിച്ചിട്ടുണ്ട്.
ആഷാഡ്
കാ എക് ദിന്,ലഹരോം
കാ രാജ്ഹംസ്,ആധേ
അധൂരെ (നാടകങ്ങള്)
അംഡേ
കേ ഝില്കേ (ഏകാങ്ക
നാടകം)
അന്ധേരേ
ബന്ദ് കമരേ ,ന
ആനേവാലാ കല് ,അന്തരാള്(നോവല്)ക്വാര്ട്ടര്
,പഹചാന്
,വാരീസ്
(കഥകള്)
ആഖിരീ
ചട്ടാന് തക് (യാത്രാ
സാഹിത്യം)
പരിവേശ്,ബകല്മി
ഖുദ് (ലേഖനങ്ങള്)
തുടങ്ങിയവയാണ്
പ്രധാന കൃതികള്
ഓം
പ്രകാശ് വാത്മീകി
ഉത്തര്
പ്രദേശിലെ ബിര്ലാ ജില്ലയിലെ
മുജഫര് നഗര് ഗ്രാമത്തില്
ജനിച്ച ഓമപ്രകാശ് വാത്മീകിയുടെ
(1950 -) രചനകളുടെ
ആധാരം സമൂഹത്തിലും ജീവിതത്തിലും
വിവശതയനുഭവിക്കുന്ന ദളിതരുടേയും
താഴ് ന്ന ജാതിക്കാരുടേയും
ജീവിതമാണ് .
അദ്ദേഹത്തിന്റെ
ആത്മകഥയാണ് ജൂഠന്.
(1997) ദളിത്
സാഹിത്യ കാ സൗന്ദര്യശാസ്ത്ര്
,സഫായി
ദേവത,
എന്നിവ
അദ്ദേഹത്തിന്റെ പ്രമുഖ
രചനകളാണ്.സദിയോം
കാ സന്ദാപ് (1989)
ബസ്
ബഹൂത് ഹോ ചുകാ (1997)
അബ്
ഔര് നഹീം (2000)
എന്നിവ
പ്രസിദ്ധ കവിതാ സമാഹാരങ്ങളും
സലാം (2000)
നോവലുമാണ്.
ഹരിശങ്കര്
പര്സായി
ഹിന്ദി
ഹാസ്യസാഹിത്യത്തിലെ പ്രമുഖരില്
ഒരാളായ ഹരിശങ്കര് പര്സായി
(1924-1995)
മധ്യപ്രദേശിലെ
ഹോരംഗാബാദിലാണ് ജനിച്ചത്.
സാഹിത്യ
സേവനത്തിനു വേണ്ടി അധ്യാപക
ജോലി ഉപേക്ഷിച്ച അദ്ദേഹം
ജബല്പൂരില് നിന്നും വസുധ
എന്ന പത്രിക പ്രസിദ്ധീകരിച്ചു.അഴിമതിയേയും
അനാചാരങ്ങളേയും തീവ്രമായി
വിമര്ശിച്ച അദ്ദേഹം
സാമൂഹിക-രാഷ്ടീയ
വിഷയങ്ങളാണ് രചനകള്ക്ക്
ആധാരമാക്കിയിരുന്നത്.റാണി
നാഗമണി കീ കഹാനീ,ജ്വാലാ
ഔര് ജാന് ,തട്
കീ ഖോജ് എന്നിവ നോവലുകളും
ഹസ്തേ ഹൈം രോതേ ഹൈം ,ജൈസേ
ഉന്കെ ദില് ഫിരേ എന്നിവ
കഥാ സമാഹാരങ്ങളും തബ് ബാത്
ഔര് ഥീ,ഭൂത്
കെ പാംവ് പീഛേ,ബേ
ഈമാന് കീ പരത്,
പഗഡംഡിയോം
കാ സമാനാ,ശികായത്
മുഝേ ഭീ ഹൈ എന്നിവ ലേഖന
സമാഹാരങ്ങളുമാണ്.
വിഷ്ണു
പ്രഭാകര്
ഉത്തര്
പ്രദേശിലെ മുസഫര്നഗര്
ജില്ലയിലെ മീറന്പൂര്
ഗ്രാമത്തിലാണ് വിഷ്ണുപ്രഭാകര്
(1912-2009)
ജനിച്ചത്.
മഹാത്മാ
ഗാന്ധി,
ടോള്സ്ററോയി
,പ്രേംചന്ദ്
,ശരത്ചന്ദ്ര
ഛട്ടോപാധ്യായ എന്നിവരുടെ
ആദര്ശങ്ങളില് ആകൃഷ്ടനായിരുന്ന
അദ്ദേഹം നാടകം,കഥ,നോവല്
തുടങ്ങി പല മേഖലകളില് കഴിവു
തെളിയിച്ചിട്ടുണ്ട്.
ചല്തീ
രാത്,തട്
കേ ബന്ധന് എന്നിവ നോവലുകളും
സിന്ദഗീ കേ ഥപേഡേ കഥാസമാഹാരവുമാണ്.
ബാരഹ്
ഏകാംഗീ ,ദസ്
ബജേ രാത്,പ്രകാശ്
ഔര് പര്ഛായി,ഊംഛാ
പര്വ്വത് ഗഹരാ സാഗര് എന്നിവ
ഏകാങ്കനാടകങ്ങളും ഡോക്ടര്
,നവപ്രഭാത്
എന്നിവ നാടകങ്ങളുമാണ്.മറാത്താ
സാഹിത്യകാരന് ശരത്ചന്ദ്ര
ഛട്ടോപാധ്യായയുടെ ജീവചരിത്രം
ആവാരാ മസീഹാ (1974)
അദ്ദേഹത്തിന്റെ
പ്രസിദ്ധ രചനയാണ്.സാഹിത്യ
അകാദമി പുരസ്കാരം ,പത്മഭൂഷണ്
(2004) എന്നീ
ബഹുമതികള് ലഭിച്ചിട്ടുണ്ട്.
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