2012, ഫെബ്രുവരി 7, ചൊവ്വാഴ്ച


फिल्मी समीक्षा
पूस की रात
मूलकथा : प्रेमचंद
पटकथा : गुलज़ार
निदेशक : गुलज़ार
गीत : रूपकुमार रातोड़
कलाकार : रघुवीर करण
मानसी उपाध्याय












किसान का जीवन कितना महत्वपूर्ण है।खेती से उनको कोई सुख नहीं मिला। पूरा जीवन काल गरीबी में गुज़रता है। इन बातों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करनेवाली एक सुंदर फिल्म है- पूस की रात। प्रेमचंद की एक छोटी कहानी गुलज़ार के निदेशन में फिल्म के रूप में पर्दे पर आयी है।फिल्मी की कहानी इस प्रकार है।

एक गरीब किसान हल्कु अपनी पत्नी के साथ रहता है।खेत में फसल पकने लगी है।रात के समय खेत में नीलगायों के आने की संभावना है। इसलिए हल्कु रात में खेत का पहराया करता है।हड्डियों भी तोड़नेवाली ठंड मे वह अपने कुत्ते के साथ गीत गाकर या बातें करके ठंड से बचने की कोशिश करता है। गर्मि के लिए वह चिलम फूँकना भी है

खेती के लिए महाजनों से कर्ज लिए पैसे वापस देने में भी वह असमर्थ है। हल्कु की पत्नी के मन में खेती की अपेक्षा मज़दूरी करना ही अच्छा है।

एक ठंडी रात में हल्कु ठंड सह न सका। वह कुछ सुख पत्ते लाकर आग जलाकर उसके सामने नाच गाकर सर्दी से बचकर लेटा । आग की गर्मि के कारण उसको गहरी नींद मिले। पर उस रात में आग फैलकर सारी फसल जल गयी।

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