2012, ജൂലൈ 6, വെള്ളിയാഴ്‌ച


इकाई परीक्षा जुलाई 2012
कक्षा दसवीं अंक 12.5
सूचनाः दिया गया अंश पढ़कर रेखांकित शब्दों का लिंग बदलकर अंश का 
        पुनर्लेखन करें।
1. कक्षा में छात्र बैठे थे। वे हिंदी पढ़ रहे थे। तभी वहाँ अध्यापिका जी आईं। 
    तब सभी छात्र खड़े हो गये।                                                    2
उत्तरः कक्षा में ...

सूचनाः खंड़ पढ़कर 4-4 विशेषण और विशेष्य शब्दों की सूची बनाएँ।
2. मेरा छोटा बच्चा गरम दूध पी रहा था। बच्चा लकड़ी की कुर्सी पर बैठा था। 
    बाहर भारी वर्षा हो रही थी।                                                  2.
विशेषण
विशेष्य





3. 'स्वार्थी कारखानों का तेज़ाबी पेशाब झेलते बैंगनी हो गई तुम्हारी 
    शुभ्र त्वचा'। यहाँ कवि क्या व्यक्त करना चाहते हैं?                         2.



4. 'गौरा को देखते ही मेरा पालने के संबंध में दुविधा निश्चय में बदल गई।
     लेखिका की दुविधा कैसे निश्चय में बदल गई?                           2.







  1. 'गौरा महादेवी जी के घर आकर अन्य पशु-पक्षियों के साथ हिल- 
    मिलकर रहने लगी।' इस प्रसंग में बहन श्यामा के नाम महादेवी जी का 
    पत्र तैयार करें।                                                          4.5 
सरकारी हायर सेकंडरी स्कूल, कडन्नप्पल्लि
इकाई परीक्षा जुलाई 2012 कक्षा नवीं अंक 10
1. रिक्त स्थान भरें:                                                                   1
    पाँव तले दबी गर्दन ….................. उपन्यास का अंश है। 
   (प्रेमाश्रम, गोदान, सेवासदन)

2. दिए गए शब्दों में से 2-2 व्यक्तिवाचक, जातिवाचक और भाववाचक संज्ञा 
    शब्द चुनकर लिखें। (रमेश, बचपन, लड़का, पिलात्तरा, शहर, विशालता)      2
व्यक्तिवाचक
जातिवाचक
भाववाचक









3. दिया गया अंश पढ़कर विशेषण और विशेष्य शब्दों को चुनकर लिखें। 2
     जंगल में बड़े-बड़े पेड़ होते हैं। पेड़ों पर सुंदर फूल और मीठे फल भी होते हैं। 
    पेड़ों के पत्ते हरे होते हैं।
विशेषण
विशेष्य








4. 'जिस गृहस्थी में पेट की रोटियाँ भी न मिलें, उसके लिए इतनी खुशामद क्यों'
     यह किसका कथन है? (होरीराम, धनिया, किसान)                            1

5. होरीराम मालिक से मिलने जा रहा है। धनिया और होरीराम के बीच का 
    संभावित वार्तालाप लिखें।                                                        4

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'नदी और साबुन' पर आस्वादन टिप्पणी
        नदी और साबुन समकालीन हिंदी कविता के प्रमुख
हस्ताक्षर ज्ञानेन्द्रपति की एक प्रसिद्ध कविता है। इस कविता
के द्वारा कवि सामाजिक समस्याओं के प्रति अपनी सतर्कता
और प्रतिबद्धता व्यक्त करते हैं।
      'नदी और साबुन' की सहायता से कवि हमारा ध्यान
प्रकृति के प्रदूषण और प्राकृतिक संसाधनों के अनियंत्रित
दोहन की ओर आकर्षित करते हैं। नदी को दुबली और
मैली-कुचैली देखकर कवि चिंतित होते हैं। क्योंकि यह
नदीं ऐसी नहीं थी। बहता पानी प्रायः निर्मल होता है।
लेकिन यहाँ नदी का रंग बैंगनी हो गया है। कल-कल करके
बहती हुई सभी की सेवा करनेवाली नदी को ऐसी हालत में
किसने डाला है? विभिन्न पशु-पक्षी नदी के पानी का
इस्तेमाल करते हैं। लेकिन उनसे नदी का जल कम या
प्रदूषित नहीं होता। लेकिन सिर्फ मानव के अनियंत्रित
हस्तक्षेप से इतनी शोषित और प्रदूषित हो गई है।
मानव ने अपनी सुख-सुविधाएँ बढ़ाने के लिए जो कारखाने
बनाए गए हैं उनका तेज़ाबी पेशाब याने विषैला जल नदी
को अत्यधिक प्रदूषित करता है।
        भारत की ज्यादातर नदियों का उद्भव हिमालय से
होता है। कवि हिमालय को एक प्रहरी या संरक्षक के रूप में
मानते हैं। इतने ताकतवर प्रहरी के होते हुए भी नदी एक
छोटी सी साबुन की टिकिया के सामने हार मानती है।
साबुन की टिकिया औद्योगिक पूँजीवाद की बिटिया है।
साबुन का इस्तेमाल पानी के जीवनपोषक गुणों का अंत
करता है। पशु-पक्षी नदी का इस्तेमाल कभी भी नकारात्मक
ढंग से नहीं करते। लेकिन मानव अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए
नदी का सत्यानाश करता है। कवि ने नदी को सबकुछ
चुपचाप सहनेवाली एक शोषित के रूप में प्रस्तुत किया है।
भविष्य के बारे में न सोचकर प्रकृति पर जो हमले हो
रहे हैं, अत्यधिक हानिकारक हैं। मानव के अनियंत्रित हस्तक्षेप
से विश्व भर में नदियों की हालत बिगड़ती जा रही है।
जल और प्रकृति के प्रदूषण और अनियंत्रित दोहन पर चर्चा
करनेवाली यह कविता बिलकुल प्रासंगिक है।

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