2012, ഒക്‌ടോബർ 15, തിങ്കളാഴ്‌ച


पेरुवयल -भारत का गौरव
"सेवा ही मेवा है” -भारतीय संस्कृति का यह सार तत्व शायद
आज भारत के मनोमंडल में नहीं।उसकी निगाह पर व्यावसायिक वृत्ति छाई हुई है।वर्तमान मशीनी सभ्यता में रंगे गए आधुनिक
मानव सेवा के महत्व को नहीं जानते।इसके लिए एक अपवाद है -पेरुवयल,एक छोटा -सा गाँव जहाँ के लोग परोपकार को अपना जीवन-वृत मानकर जी रहे हैं।केरल के कालिकट का पेरुवयल गाँव आज भारत के मस्तक में एक तिलक बनकर चमक रहा है। हाल ही में लोक सेवा आयोग द्वारा चलाई गई परीक्षा में एक प्रश्न था- भारत में वह कौन-सा गाँव है जो "संपूर्ण नेत्रदान गाँव" के नाम से विख्यात है ? बहूत कम लोग इसका उत्तर जानते नहीं थे। आज हर किसी के जुबान पर इस गाँव का नाम है,गाँव
वालों के त्याग की कहानी है।यहाँ के हर निवासी मरने के बाद अपनी आँखों को दान करने में सन्नद्ध है।वे इसे अपना परम कर्तव्य मानते है। ऎसे भले मानसों के कारण पेरुवयल में अंधों की संख्या नहीं के बराबर है।त्याग और सेवा की इस भावना से कितने लोग अपनी अंधकारमय ज़िदगी से प्रकाश की दुनिया में कदम रख गए,खुली आँखों से संसार का सौन्दर्य देख सके। मानव सेवा को माधवसेवा माननेवाले ऎसे लोग सचमुच हम सबके लिए मार्गदर्शक है।
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