संगोष्ठी
समाज
में समभाव की अनिवार्यता
मनुष्य
सामाजिक प्राणी है । अपनी
आवश्यकताओं की पूर्ति केलिए
वह एक दूसरे पर निर्भर रहता
है।इसी कारण मनुष्य सामाजिक
बन गए।
मनुष्य
अपने कार्य केलिए समाज में
मानव के बीच में कई प्रकार
भेदभाव रखा है। जाति के नाम
पर समाज में मानव के बीच में
कई प्रकार भेदभाव रखा है।जाति
के नाम पर समाज में भिन्नता
पैदा की गई ।फिर वह एक सामाजिक
समस्या बन गई।
काम
के आधार पर मानव को अनेक जातियाँ
रखा गया।ब्राह्मण,
क्षत्रिय,वैश्य,शूद्र,आदि
वर्गीकरण मनुष्य जाति को
दिया।यही से जातिव्यवस्था
शुरू होती है।आज-कल
यह भयानक रूप बन गया है।समाज
में भिन्नता पैदा हो गयी
है।हमारी एकता नष्ट होने के
कारण जाति व्यवस्था है।
गाँधीजी
ने दलितो की उन्नति केलिए अथक
प्रयास किया था ।दलितो की
शिक्षा का व्यवस्था हो गया
।नई शिक्षा भेद भाव मिटाने
की प्रेरणाएँ दी। आज का समाज
शिक्षित है । वे समझते है कि
समाज में सब एक साथ रहना अनिवार्य
है। यहाँ एकता कायम रखने का
प्रयत्न हो रहा है।
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