2012, ജനുവരി 24, ചൊവ്വാഴ്ച


आमोद कारखानिस
दौड़
मई की कड़ी धूप । सूरज जैसे आग उगल रहा है। पतझड़ ने पहले से कई बड़े-बड़े पेड़ों को सूखा दिया है।
उन्हें बे-पत्ती कर दिया है।और अब मई के तपते सूरज ने पानी के स्रोत भी सूखा दिए हैं।और मई के तपते
सूरज ने पानी के स्रोत भी सूखा दिए हैं। सूखी धरती में दरारें पड़ गई है। न पत्तियाँ , न पानी ,जंगल जैसे सुनसान हो गया है।जीवन मानो थम-सा गया है।
और जून का महीना आता है......
दक्षिण से काले-काले बादल उमड़ -धुमड़कर आते हैं। बारिश की पहली बूँदें पड़ते ही मिट्टी से सौंधी गन्ध उठती है।थमी जि़दगी जैसे अचानक जाग उठती है- और शुरू हो जाती है,एक दौड़...
अजब दौड़ है,गजब दौड़ है कि ये ज़िन्दगी यारों दौड़ है....
इधर दौड़ है,उधर दौड़ है ये जीना यारों दौड़ है....
बारिश की बौछारों के साथ ज़मीन के अंदर सोेए हज़ारों -हज़ार बीज जाग उठते है- नए जीवन की शुरुआत
होती है।नए अंकुर पनपते है ज़मीन पर इधर-उधर सभी जगह पर प्रकृति की खूबसूरती तो देखिए।इतने सारे बीज पनपना शुरु करते है-कुछ एक साथ ,कुछ थोड़ा आगे-पीछे । सभी को चाहिए पानी ,पोषक तत्व और
प्रकाश भी ।
यह दौड़ है उनकी समय के साथ ।


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