2012, ജനുവരി 24, ചൊവ്വാഴ്ച


प्रेमचंद (1880-1936)
प्रेमचंद हिंदी साहित्य में 'उपन्यास सम्राट' कहलाते हैं।अठारह उपन्यास और दो सौ चौबीस कहानियाँ उनकी ओर से प्रकाशित हैं।उनकी कहानियाँ जीवन के मानसिक यथार्थ का दस्तावेज़ हैं।उन्होंने समाज के विभिन्न वर्गों की समस्याओं को लेकर प्रगतिशील दृष्टिकोण का परिचय दिया है।मानव-जीवन के दुख और दर्द को स्वयं अनुभूत करके अपनी रचना का उन्होंने विषय बनाया । उनकी क्राँतिकारी विचार-धारा और रचनात्मक ईमानदारी भारतीय साहित्य में अलग स्थान रखती है। गोदान उनकी अमर रचना है। सेवासदन ,प्रेमाश्रम,निर्मला,गबन आदि उनके अन्य लोकप्रिय उपन्यास है।


मोहन राकेश (1925-1972)








हिंदी के प्रमुख कहानीकार ,नाटककार तथा पत्रकार । मातृभाषा पंजाबी
होने पर भी हिंदी लेखक के रूप में सम्मान एवं प्रतिष्ठा ।स्वातंत्र्योत्तर भारत
की बदलती हुई ज़िदगी का यथार्थ चित्रण इनकी रचनाओं का मूल-स्वर है।
महानगरीय जीवन की विकृतियाँ ,झूठी सामाजिक नैतिकताओं एवं व्यक्ति के मानसिक अंत:संघर्षें को उन्होंने अपनी रचनाओं का विषय बनाया ।आषाढ़
का एक दिन ,लहरों के राजहंस (नाटक),अंधेरे बंद कमरे में ,न आनेवाला
कल (उपन्यास ) इंसान के खंडहर जानवर और जानवर (कहानी संग्रह)
आदि इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं।






अज्ञेय (1911-1987)








पूरा नाम सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय । ' अज्ञेय ' काव्यनाम। हिंदी साहित्य में नई व्यंजकता के प्रवर्तक एवं प्रतिष्ठित रचनाकार।
कवि कहानीकारक तथा पत्रकार । कितनी नवों में कितनी बार काव्य-संग्रह
पर ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त ।विश्व भर का भ्रमण एवं विश्वविद्यालयों में प्रोफ़सर । स्वतंत्रता -पूर्व वे क्राँतिकारी थे । अत: जेल की सजा काटी है।
अज्ञेय की संवेदना समाज और समय की सहज अभिव्यक्ति मानी जाती है।
शेखर -एक जीवनी ,नदी के द्वीप (उपन्यास) हरी घास पर क्षण भर,
भग्नदूत (काव्य-संग्रह )आदि अन्य रचनाएँ ।






हरिशंकर परसाई (1924-1995)
हिंदी साहित्य के शीर्षस्थ हास्य -व्यंग्यकार । उनकी कलम निर्मम
,निर्मीक,स्पष्ट तथा निश्चल थी। वर्तमान समाज में तेजी से पनपनेवाले अनाचार ,असंमंजस ,दंगे,आडंबर ,झूठ आदि पर उन्होंने तीखा प्रहार
किया । वे अपने युग के प्रति सचेत एवं जागरूक थे।उनकी रचनाएँ परसाई
रचनावली के छह खंडों में प्रकाशित है। रानी नागमति की कहानी ,ज्वाला,
और जाल और तट की खोज उनके उल्लेखनीय उपन्यास है। हँसते है रोते हैं,
जैसे इनके दिन फिरे -प्रसिद्ध कहानी संग्रह हैं।















विष्णु प्रभाकर (1912-2009)

विष्णु प्रभाकर हिंदी के अजात शत्रु साहित्यकार माने जाते है। अंताराष्ट्रीय
सम्मान प्राप्त भारतीय लेखक । पद्मभूषण से लेकर ढेर-सारे पुरस्कार प्राप्त ।
वे महात्मागांधी ,टाँलस्टाँय,शरतचंद्र चट्टोपाध्याय एवं प्रेमचंद से प्रभावित थे।
कहानी, नाटक,उपन्यास,यात्रावृत्त आदि के लेखक । अनूठे व्यक्तित्व एवं कृतित्व से अमर। अर्धनारीश्वर,निशीकाँत(उपन्यास) कौन जीता कौन हारा
(लघुकथाएँ) हँसते निर्झर दहकती भट्टी (यात्रावृत्त) आदि इनकी रचनाएँ हैं।
मन्नु भण्डारी ( 1931)
हिंदी कथा लेखिकाओं में मन्नु भण्डारी का महत्वपूर्ण स्थान है। नारी मन
की गहराइयों में उतरकर उसकी यथार्थ स्थिति को चित्रित करने में उन्हें
अदभुत सफलता प्राप्त हुई है। विदेशी भाषाओं में भी उनकी रचनाएँ
आदर के साथ पढ़ी जाती है। उनके 'आपका बेटी ','महाभोज और एक
इंच मुस्कान 'हिंदी उपन्यास साहित्य के मील-पत्थर है। वे सफल पटकथा
लेखिका भी है।
ओमप्रकाश वात्मीकी
प्रसिद्ध अंबेदकरवादी दलित रचनाकार । उत्तरप्रदेश के मुजफ़फरनगर जिले के बरला गाँव में जन्म।चुह्ड़ा जाति के होने के कारण जीवन संघर्षरत ।दलितों की इनि-गिनी आत्मकथाओं में इनकी जुठन विशेष प्रतिष्ठा पा चुकी है।
यह भारतीय समाज की जाति संरचना और उसमें अछुतों की दुस्थिति को दर्शाती है। दलित जीवन की मर्म तक पीड़ा को यह व्यक्त करती है। उनकी
पहली रचना 'बस बहुत हो चुका ' है ।

അഭിപ്രായങ്ങളൊന്നുമില്ല:

ഒരു അഭിപ്രായം പോസ്റ്റ് ചെയ്യൂ