2012, ജനുവരി 23, തിങ്കളാഴ്‌ച

निम्न लिखित कथांश पढें।

शाम हुआ । राहुल ने गेट खोलकर अंदर प्रवेश किया।

घर के द्वार पर ही उसकी माँ खड़ी थी। राहुल को देखते ही

वह उसकी ओर दौड़ी और उसे गले लगाकर फूट पड़ी।उसकी बरसों की तपस्या आज पूरी हो गई।पुत्र को यहाँ तक पहूँचाने में उसे क्या-क्या सहने पडे।"भगवान के घर में देर तो ज़रूर है, अंधेर नहीं।"

0 इस कहानी का आरंभिक अंश अपनी कल्पना के अनुसार लिखें।






















उस समय राहुल की आयु आठ वर्ष की थी। वह तीसरे दर्जे में पढ़ता था।हमेशा की तरह उस दिन भी वह पडोस के मित्रों के साथ घर के सामने के बाग में खेलने गया।नित्य लौट आने का समय बीत जाने पर भी राहुल नहीं आया। माँ उसे ढूँढकर वे नित्य खेलने के बाग में पहँूची।लेकिन वहाँ कोई नहीं था। राहुल को खोजकर मित्रों के घर पहूँची माँ से उन्होंने बताया कि संध्या के पहले ही केल समाप्त करके सब अपने -अपने घर गए। घरवाले घबरा गए। राहुल कहाँ गया होगा ?सोचकर उन्हें कोई पता नहीं मिला। समाचार सुनकर पडोस के लोग एक-एक करके आने लगे। रात आयी । कुछ लोग राहुल के पिता को साथ लेकर पुलीस थाने गए और लड़के के अंतर्धान के बारे में

शिकायत की। अन्वेषण ज़ारी रहा। लेकिन राहुल के बारे में कोई पता नहीं मिला।दिन...महीने...वर्ष...बीत गए। राहुल के माँ-बाप बेटे की प्रतीक्षा करते रहे।अचानक एक दिन राहुल के पिता के बंबईवाले संबन्धी ने वहां की एक गंदी गली में कुछ समवयस्क

लड़कों के साथ राहुल के सदृश्य एक लड़के को देखा।उसके द्वारा दी गई सूचना के अनुसार पुलीसवालों ने रहस्य रूप में अन्वेषण किया। उनके अथक परिश्रमों के अंत में शहर से बहूत दूर पर एक गैर आबादी स्थान के घर में राहुल और अन्य लड़कों

को मिला।उन्होंने बताया कि रोज़ कुछ आदमी आकर उन्हें एक स्थान पर काम के लिए ले जाते हैं और आधी रात पर लौट लायेंगे। दिन में एक बार रूखी-सूखी रोटी देंगी।ये लोग लड़कों को कड़ी सजा देते थे और विश्राम करने न देते। लड़कों के सारे शरीर में

धाव का निशान देख सके। राहुल के बारे में सूचना मिलने पर उसे ले जाने केलिए

पिता और अन्य कुछ संबन्धी मुंबई चले। लंबे छ: वर्षों के बाद राहुल के माँ के हृदय

में एक नयी उजाला आयी।

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